Sunday, June 23, 2013

मैथिली गजल

रुप रँग एके दुख रँज एके
दोसराके पछाड़यके ढँग कते

भेल बहुत भेल आबो सोचियौ
तौलू अपना मे अछि ढँग कते

ई हम कयलौं तों की कयले
कहिआ धरि आ ई प्रपँच कते

बिनु बातक रगड़मे पड़ल रहब
अहिसँ अछि मिथिला तँग कते

क्षय नै दोसराक, देश राग रचू
अपन जयक रचू नव छँद जते ...!        अनिल मल्लिक  !!!

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