भोर छै साँझ छै शहर छै गाम छै
नोकरी बेपार छै बहुत रास काम छै
जकर खून दौड़ै छै लोकक नश नशमे
गाममे रहैछ ओ बुझू पाकल आम छै
कतबो बिरोध रहै ओकर विचारसँ, मुदा
ओकरे कन्हा चढ़ि भेटल ई मकाम छै
जुआनी गलि गेलै पूत सभके पोषयमे
जे पूत बिसरै छै कपूत छै, पाषान छै
ओकर आत्मा जुरायल रहै मोनमे राखू
स्वर्ग से हो यतै छै नर्क अहि ठाम छै
जतबे रहै छै लोककें ओतबेमे निबाहै छै
जिनगीक धूपमे बुझिते छी पिता छाँह छै....! अनिल मल्लिक !!!
2 comments:
बहुत प्रशन्नता भेल अपन गजल अपनेक वेव साईट पर पाबि, अपनेक प्रयाशक सराहना करैत छी आ युवा सभमे अपन सँस्कृति प्रति अहि तरहक लगाव आओर जागृत होय से अपेक्षा सेहो रखने छी....अनेकानेक शुभकामना सहित, अनिल मल्लिक
हमरा प्रयास के आहाँ सराहना केलौ, तेकरा लेल बहुत बहुत धन्यबाद !!
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