अहि कवितामें “खास कय” कर्ण कायस़्थ समाजमें (आन समाजक बारे ओतेक नहि बुझल अछि) कन्या परिक्षण कएलाक बादो जे छँटबाक प्रवृति छैक आ अहिसँ कन्याँक उपर केहन मानसिक दवाव, असर पड़ैत छैक आ तखन दू तरहक सोच मोनमें अबैत हेतैक सकारात्मक आ नकारात्मक, अहि कवितामें एकटा कन्याक मोनक भाव कहबाक प्रयाश कयने छी....
हम कहि दैत छी”
आईयो सजल छी पुतरी जेहन हम, ल'क' जेबनि हम फेरो चाय
लाख मना केलहुँ हम फेरो, चलल हमर नै कोनो उपाय
फेर अओलैथ देखवा लेल हमरा, पुत्र,पिता औ संगे माय
बजता, भुकता, देखता, सुनता फेर निकलता कहिते 'बाय'
फेर असमंजस मे कटत समय किछु, चिंतित रहता बाबु, भाय
भोर मन्दिरमे सांझे चौरा, सदिखन प्रार्थना करती माय
रंग,रुप,गुण चाही बिलक्षण, संगे जथगर जोगार भ'जाय
मिन-मेख हमरे मे निकालथि, अपन पुत्र'क खुब बडाय
हमरा देखता एना की कहथि, चलू प्रोडक्ट'क डिस्प्ले भ'जाय
सोचि बुझिक' ने जाईछी कतहु यौ, बेर बेरक झमेला किए भाय?
कहिया धरि एहन सहब हम, आब करब हम ठोस उपाय
कलम बनल अछि शस्त्र हमर, आ माँ शारदे छथि सहाय
यश, किर्ती, धन, मान, प्रतिष्ठा, सबके लेब हम आब रिझाय
पिडा की होइ छै तखनि ओ बुझता, जखनि हम हुनका देब घूमाय
आजु'क बाद ने सजब एना हम, ने ल'क' जेबनि हम फेरो चाय
किछु दिन बाद ओ चाहता "अपोईन्टमेन्ट", हमरा संग पिबै’क चाय… ! ….अनिल मल्लिक
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