साबनके महिना मे परैछै पनिया कि झुमैछै खेतमेँ किसान रे ।
राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कखन हेतै बिहान रे । । २ । ।
छुपु छुपु धान रोपै किसान सब गाबैछै बिरह के गीत ।
कान्हा पर कोदारी आ माथपर गगरी करै छै आपस मे प्रित । ।
होते भिनसर मे उठे किसनबा बनबैछै दोसर पलानरे । ।
राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।
हरिहर खेत देखी मन रमाए, अनेक किसिम के बात पुराए ।
याँहे अन्न बेचिके बच्चा पढाएब बनाएब देश के महान रे । ।
राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।
अगहन महिना मे धान कटैछै, घर घर मे नयाँ कोठी बनैछै ।
बोझा बान्ही के लाबै के राखैछै, भरल छै खरिहान रे । ।
राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।
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