Tuesday, July 9, 2013

मैथिली गीत


साबनके महिना मे परैछै पनिया कि झुमैछै खेतमेँ किसान रे ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कखन हेतै बिहान रे । । २ । ।

 

छुपु छुपु धान रोपै किसान सब गाबैछै बिरह के गीत ।

कान्हा पर कोदारी आ माथपर गगरी करै छै आपस मे प्रित । ।

होते भिनसर मे उठे किसनबा बनबैछै दोसर पलानरे । ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।

 

हरिहर खेत देखी मन रमाए, अनेक किसिम के बात पुराए ।

याँहे अन्न बेचिके बच्चा पढाएब बनाएब देश के महान रे । ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।

 

अगहन महिना मे धान कटैछै, घर घर मे नयाँ कोठी बनैछै ।

बोझा बान्ही के लाबै के राखैछै, भरल छै खरिहान रे । ।

राती अन्हरिया बाजै पपिहरा कख न हेतै बिहान रे । । २ । ।

 

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