अब सीता रहली कुमारी हो रामा धनुषा नहि टुटे, कठिन र्पन जनक जी ने ठानल लोहे के धनुषा बनाई हो रामा धनुषा नहि टुटे देशही देश, जनक जी नेयोत पठाओल, अयोध्या मे परल हकार हो रामा धनुषा नहि टुटे देशही देशके भुप सब आयल धनुषा छुवी छुवी जाय हो रामा धनुषा नहि टुटे मुनीजीके सँग दुई बालक आयल एक ही श्यामल एक गोर हो रामा बामे कन्धा रामा धनुषा उठाओल दाहीन कयल तीन खण्ड हो रामा एक ही खण्ड आकाश हो लागल, एक खण्ड लागल पताल हो रामा एक ही खण्ड जनकपुर खसल धनुषा कयल चुरम चुर हो रामा भेल विवाह परल सिर सिन्दुर सीता लिय अगुँली...